जादा तर दर्शनशास्त्र के लिए अंग्रेजी शब्द ‘Philosophy’ प्रयुक्त किया जाता है । मगर इन दो शब्दोंके तात्पर्य में बहुतही अंतर है । दर्शनशास्त्र के विषय में विभिन्न प्रकार की अवधारणाएँ प्रचलित हैं । कोई इसे बुढापे में करने की बातें मानता है तो कई लोग इसे केवल बड़े बड़े विद्वानों के समय यापन का साधन मानतें हैं । मगर ‘दर्शन’ का हर एक के जीवन से गहरा सम्बन्ध है ।
इस उपक्रम में हम सांख्य, योग, वैशेषिक, न्याय, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा अर्थात वेदान्त इन छह आस्तिक तथा चार्वाक, बौद्ध, जैन इन तीन नास्तिक दर्शनों के बारें में चर्चा करेंगे ।
कुल मिला कर दस व्याख्यानों में संक्षिप्त रूपसे नौ दर्शनोंमें निहित मूल सिद्धान्तों का द्रुत अवलोकन इसके अंतर्गत किया जाएगा ।
दर्शनों की अर्थगंभीरता और व्याप्ती का विचार करते हुए इतनी कम अवधी में उनका समग्र ग्रहण करना- कराना तो असंभव ही है । पर केवल कुछ किम्वदन्तीयाँ या विपरीत अवधारणाओं के कारण दर्शनशास्त्र सें दूर रहनेवाले जनसाधारण के मन में दर्शनों के प्रती आस्था निर्माण करने का यह उपक्रम मात्र एक प्रयास है।
इस अभ्यासक्रमकी रचना की है श्री. प्रणव गोखलेजी ने । श्री. प्रणव गोखले पुणेके प्रसिद्ध वैदिक संशोधन मंदिरके "असिस्टेंट डायरेक्टर" है । वे दर्शनशास्त्रोमे अपनी PHd का अध्ययन कर रहे है । उन्होंने संस्कृत भाषामे M.A. हासिल की है, और M.A. के दौरान "वेदांत तत्वज्ञान" उनके अनुसन्धानका मुख्य विषय था। श्री प्रणव गोखलेज़ीके 'रिसर्च पेपर' अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्समें प्रसिद्ध हुए है ।
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